Saturday, January 12, 2013

संवाद के बाद




दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं. पहले होते हैं ज़ुबान के खिलाडी. तुले मुले वाक्य जैसे उनकी ज़ुबान पर बैठे हुए हैं, वे बस इंतज़ार में रहते है कि आदेश मिले और वे बहार कूद पड़े. ऐसे लोगों को कुछ बोलने के लिए ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं पड़ती. किसी ने कुछ कहा, और तुरंत इनके बोल फूटने में देरी नहीं होती. दूसरे वो होते हैं जिनके हाथ पहले ही खड़े हुए होते हैं. इनको बहस करने में कोई दिलचस्पी नहीं होती. ये आलसी व्यक्तियों कि उस श्रेणी में आते हैं, जिन्हें सिर्फ काम करने में ही नहीं, बल्कि बोलने में भी आलस आता है. ‘हूँ’ ‘हाँ’ करने में इनकी ज़िन्दगी व्यतीत हो सकती हैं. और तीसरे होते हैं वो जिनके जवाब बड़े फ़िल्मी तरीके के होते हैं पर ऐसे जवाब इनके दिमाग में आते हैं संवाद ख़तम होने के कुछ घंटो या दिनों बाद. संवाद के समय कुछ सस्ते से हलके शब्द इनकी जुबां से निकल आते हैं. बात में दम न होने का इन्हें अफ़सोस रहता है और ये उस संवाद के बारे में दिन भर सोचते रहते हैं. कुछ पल बाद इनके दिमाग की बत्ती चमकती है एक ठोस जवाब के साथ. किन्तु संवाद ख़तम होने के कारण उस जवाब की भी एक्सपायरी डेट आ चुकी होती है.

तीसरी श्रेणी की संख्या बढाने में योगदान रखता है पिनाकिन. एक अच्छे लेखक बन्ने की उम्मीद रखता हुए पिनाकिन चाहता कि उसकी हर कही और लिखी हुई बात में वजन हो. लोग सोचे कि क्या बोलता है, दूसरों के मुह बंद करा देता है. पर उसे दुःख इस बात का है कि जब बोलने की बारी आती थी तो भारी वजनदार शब्द छुट्टी मनाने चले जाते हैं. पिनाकिन अगर ५ किलो की बात करना चाहता था तो उसके मुह से निकलती थी बात मात्र ५० ग्राम की.

एक दिन पिनाकिन लोकल ट्रेन में मीरा रोड से अँधेरी तक का सफ़र तय कर रहा था. लोकल  ट्रेन में चढ़ना या उतरना किसी किला फतह करने से कम न था. उतरने वालो की पहले से ही दरवाज़े पर कतार लग जाती है. बम्बई में नया आया पिनाकिन इस बात से अज्ञान था. उसे हवा के थपेड़े खाना पसंद था इसलिए वो दरवाज़े पर बाहर लटक गया. पीछे के लोगों को यह लगा कि पिनाकिन को अगले स्टेशन पे उतरना होगा इसलिए कुछ नहीं बोले. अगला स्टेशन आते ही पीछे की कतार जब जोर से धक्के मारते हुए आगे बढ़ी तो पिनाकिन मुह के बल नीचे गिर गया. किसी का हाथ उसके सर पे तो  किसी का घुटना उसकी पीठ पर. कुछ ही सेकंड्स में उतरने वाली भीड़ नीचे आ चुकी थी. किसी ने जाते हुए एक ताना उस पे मढ़ दिया ‘अबे उतरना नहीं था तो खड़ा क्यूँ हुआ सबसे आगे?’ ‘सॉरी मुझे पता नहीं था, नया हूँ शहर में’ बोलके पिनाकिन अपना सा मुह लिए वापिस चढ़ गया और चुपचाप पीछे जाके खड़ा हो गया. सफ़र करते करते उसे एहसास हुआ की वो शहर में नया आया है और भीड़ को यह बात समझनी चाहिए थी. अगर वो घटना फिर होती तो वो बोलता ‘क्या ऐसे ही आप बम्बई वाले बहार के लोगों का आमंत्रण करते हैं? यह नहीं सोच सकते थे कि नए आये व्यक्ति को  थोडा मार्गदर्शन करा दे. वाह रे बम्बई वालों !’. ऐसा सोच के उसके दिल को ठंडक मिली. पर न तो वो व्यक्ति अब वहां था और न ही वो घटना. अगले स्टेशन पे पिनाकिन चुपचाप कतार में लग के नीचे उतर गया.

पिनाकिन अँधेरी में एक जगह लेखक के पद के लिए इंटरव्यू देने जा रहा था. जब कंपनी के बॉस ने उससे सवाल पूछने चालु किये तो हलके फुल्के मामूली शब्दों में उसने जवाब दे दिए. उसे बोला गया की एक हफ्ते बाद उसे बताया जायेगा की उसका चयन हुआ या नहीं. पर उसे पता था की उसने ऐसे बेकार जवाब दिए हैं की लेखक तो क्या उसे रिसेप्शनिस्ट के लिए भी नहीं बुलाया जाएगा. वापिस आते हुए रास्ते में पूरा इंटरव्यू उसके दिमाग में फिर उमड़ा. बॉस ‘आपका CV?’ ‘जी, सॉरी वो ट्रेन की धक्का मुक्की में फट गया.’ ये बोलके वो चुप हो गया और अगले सवाल की प्रतीक्षा करने लगा. पिनाकिन को लगा वो ये भी बोला सकता था ‘सर CV तो नहीं है पर उसमे जो लिखा था उसको विस्तार में मैं आपको मुह ज़बानी बताता हूँ. मेरी पढाई मेरठ से हुई, फिर .......” पिनाकिन को लगा वो यह बोल देता तो शायद बेहतर इम्प्रैशन पड़ता.

घर वापिस आते हुए उसने देखा कि एक छोटी बच्ची ने चिप्स खाके उसका पैकेट सड़क पर फ़ेंक दिया. बगल में उसके माँ बाप भी खड़े थे. पिनाकिन देख के निकल गया. थोड़ी देर बाद उसे महसूस हुआ कि उसे बच्ची को पैकेट सड़क पे फेंकने से रोक देना चाहिए था. उसने पीछे मुड़कर देखा पर तब तक वो परिवार जा चुका था. इंटरव्यू छोड़ के अब ये दास्ताँ उसके दिमाग में घूम रही थी. घर आकर उसने रूममेट को कड़क आवाज़ में ऊँगली उठा के बोला ‘उस छोटी बच्ची ने अपने मम्मी पापा के सामने वो पैकेट फेंका और उन्होंने कुछ कहा नहीं, मैंने सोचा की उन्हें बोलूं “भाईसाहब, आपकी बेटी छोटी है, उसे समझ नहीं पर आप तो उसे समझा सकते हैं की ये सड़क पे नहीं कूड़ेदान में फेंकने की चीज़ है. आप आज उसे टोकेंगे तो वो ज़िन्दगी भर याद रखेगी. दूसरो पर ऊँगली उठाने से पहले हमें खुद पे निगरानी रखनी चाहिए.” क्यूँ सही बोलता ना मैं?’  रूममेट को उसकी ज्ञानवर्धक बातो में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी तब भी वो थोडा प्रयास लगा के बोला ‘तू मुझे क्यूँ ये सब बता रहा है, उन्हें बोला क्यूँ नहीं”. पिनाकिन को अभी तक अपनी बात पे गर्व कर रहा था उसे एहसास हुआ की ये सब उसने सोचा है, बोला कुछ नहीं. पिनाकिन ने निर्णय लिया कि अगली बार वो अपनी बात को उसी समय अंजाम देगा.

एक रात पिनाकिन कुछ लिखने बैठा ही था की उसका रूममेट उसी समय घर आया. उसे अपने शहर से आये हुए तीन महीने हो चुके थे. पूरा दिन उसका आवारागर्दी में बीतता था और जब वो उससे बोर हो जाये तो कभी कभी IAS की तय्यारी कि किताब उठा के एक दो पन्ने देख लेता था, जिसके लिए मुख्यतः बम्बई आया था. रोज़ की तरह नशे में धुत्त हुआ वो आज पिनाकिन कि मेज पे सर रख के रोने लग गया. उसके दुःख की वजह थी अपने लक्ष्य से भटक जाना. ‘मुझे इस बात का एहसास है..... कोई भी रात ऐसी नहीं होती जब मुझे अपनी आवारागर्दी पर गुस्सा नहीं आता..... रोज़ रात को प्रण लेता हूँ की कल से पढूंगा और अगले दिन ज़िन्दगी फिर उसी सड़े गले ढर्रे पर चलने लगती है..... मैं ऐसा नहीं था और ना ही ऐसा बनना चाहता हूँ. मुझे IAS बनना है, पापा का सपना पूरा करना है....’ नशे में होने की वजह से बहुत प्रयास लगा के ये बात वो बोल पाया. पिनाकिन कुछ इसी संधर्ब में अपनी एक कहानी लिखा रहा था. उसे अपना एक लिखा हुआ डायलोग याद आया और कुछ और शब्द जोड़ के वो बोल पड़ा, ‘सुनो, हर सुबह एक नयी सुबह होती है. तुम हार मानके नहीं बैठ सकते. जो हो गया है उसे पीछे छोड़ दो और एक नयी उम्मीद के साथ आगे बढ़ो. तुम्हारे अन्दर कि लौ बुझ जाये, इससे पहले तुम उस ज्वाला को उजागर कर दो और हर तरफ उसकी रौशनी फैला दो. अगर तुमने दृढ निश्चय किया है तो तुम्हे तुम्हारा लक्ष्य पाने से कोई नहीं रोक सकता. तुम चाहो तो कल मैं तुम्हारे साथ बैठके तुम्हारी पढाई का टाइम टेबल बना दूंगा. कल क्या अभी बैठते हैं, चलो.” यह बोलके पिनाकिन  ने खुद की कही हुई बात पे बड़ा गर्व किया. अभी तक मेज पर सर रखे हुए दोस्त ने सर उठाकर पिनाकिन को अचम्भित तरीके से देखा और ‘ह्म्म्म......’ करता हुआ अपनी शर्ट के बटन खोल के लेट गया. “अभी थोडा नशे में हूँ, कल सुबह देखते हैं. चल तू भी सोजा भाई, तूने भी चार घूंट अन्दर डाल रखी हैं लगता है, पता नहीं क्या क्या बोल रहा है.” अगले दो मिनट में वो खर्राटे भरने लग गया. शराब में धुत्त हुए इंसान के सामने प्रवचन देने की मूर्खता पर पिनाकिन को अफ़सोस हुआ. उसने हॉल्स की एक गोली मुह में डाली और हाथ से गले को मालिश करता हुआ बगल में लेट गया.

1 comment:

  1. So, what did pinakin learn in the end? Is it that he learned that there is no point in explaining people anything because they are too ignorant for their own good?

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